नर सेवा  ही नारायण सेवा

स्वामी विवेकानंद जी ने भी सेवा को सर्वोच्च कार्य बताते हुए शिव भाव से सेवा करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने मंत्र दिया – “यत्र जीव तत्र शिव” (जहां जीव है वहां शिव है) हम जिसकी सेवा कर रहे है उसे शिव मानते हुए सेवा करना आध्यात्मिक चरम सत्य का आविष्कार है। इसीलिए उन्होंने दीन-दुखियों के लिए “दरिद्र नारायण” शब्द का प्रयोग किया।